राम राम साय ॥
5 जनवरी 1981 को सीकर जिले के गाँव मगनपुरा ( दांतारामगढ़ ) में इनका जन्म हुआ ।
इनके पिताजी श्री दुल्हाराम जी हैं जो पेशे से अध्यापक हैं ।
बजरंग पांच भाइयों में दूसरे नंबर के है। बजरंग जी 2001 में सेना में भर्ती हुए ।
एवं वर्तमान में दिल्ली में तैनात है। इनका सबसे छोटा भाई जगदीश प्रसाद भारतीय वायु सेना में कम्पाउंडर है।
सुनहरी उपलब्घियां :
2001 में भारतीय सेना में सिपाही के पद पर नियुक्ति के बाद फरवरी 2001 में हैदराबाद में नौकायान क्षेत्र में पदस्थापना हुई। वर्ष 2002 से 2004 तक पूना में नौकायान का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्ष 2003 में प्रशिक्षण काल में ही सबसे पहले नेशनल चैम्पियनशिप में रजद पदक जीता। वर्ष 2004 में सेना की ओर से खेलते हुए चंडीगढ में आयोजित नेशनल चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल किया। 2005 में हैदराबाद में आयोजित 11वीं एशियन चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण और दो कांस्य पदक जीते। 2006 में श्रीलंका में हुए सैफ गेम में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए दो स्वर्णपदक जीते। वर्ष 2006 में दोहा कतर में 15वें एशियन गेम्स में 1 रजत पदक जीता।
वर्ष 2007 में कोरिया में 12वीं एशियन चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण पदक जीता। 12 वें एशियन रोर्ईग चैम्पियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए रजत पदक हासिल किया। वर्ष 2008 में ओलम्पिक गेम्स में रजत पदक जीता, इसी उपलब्धि पर वर्ष 2008 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया। वर्ष 2009 में 4 से 8 नवम्बर तक ताईवान में आयोजित 13 वीं एशियन नौकायान चैम्पियनशिप प्रतियोगिता में हांगकांग को हराकर स्वर्ण पदक जीता।
सूबेदार बजरंगलाल ताखर कहते हैं '....मुझे गर्व है कि मैने शेखावाटी में जन्म लिया है। मेरी अब 2010 में बीजिंग में होने वाले एशियाड में स्वर्ण पदक जीतकर देश व जन्मभूमि का नाम रोशन करने की तमन्ना है'।
ताखर अपनी इस उपलब्धि का श्रेय अपने माता-पिता और गुरू ब्रिगेडियर के.पी.सिंह देव को देते हैं। ताखर ने कहा कि मैं बास्केटबॉल का खिलाडी था। सेना में भर्ती होने के बाद सेना की ओर से बास्केटबॉल के अनेक मैच खेले और जीते। लेकिन वर्ष 2001 में हैदराबाद में तैनाती के साथ ही मेरा खेल जीवन बदल गया। यहां मेरी काबिलियत को मेरे खेल जीवन के गुरू ब्रिगेडियर के।पी.सिंह देव ने नौकायन का प्रशिक्षण दिलवाया। परिणाम यह रहा कि मैं एक के बाद एक जीत हसिल करता गया।
पत्नी ने दी प्रेरणा -
बजरंगलाल की सफलता के पीछे पत्नी का भी हाथ है। बकौल बजरंगलाल वर्ष 2008 में ओलम्पिक खेलों में भाग लेने के लिए चीन जा रहा था तब उसकी पत्नी उर्मिला ने तीन शब्द कहे 'कामयाब होकर लौटना'। और यही तीन शब्द जीत के लिए जुनून बन गए। हर समय उनके कानों में यही तीन शब्द गूंजते रहे। बजरंगलाल ने रहस्योद्घाटित करते हुए बताया कि आज सारा भारत मुझे ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने की वजह से जानता है, लेकिन चीन के लिए रवाना होते समय तक मेरी पत्नी उर्मिला ओलम्पिक खेलों और उसके महत्व के बारे में जानती तक नहीं थी। इसलिए उसने मुझसे कहा कि जिस खेल के लिए जा रहे हो उसमें जीतकर लौटना।
जय जाट !
बहुत अच्छा लगा। श्री बजरंगलालजी ताखर के विषय में विस्तार से जानने के लिए पिछले कुछ दिनों से जिज्ञासु था। आपने बतलाया, आभार।
ताखर साहब तो जूझारू प्रतिभा हैं ही, उनको बधाई।