कुशल जी पर इसलिए भी गर्व होता है कि उन्होंने ईमानदारी, निष्पक्षता और न्यायप्रियता के साथ काम किया। 35 साल का प्रशासनिक कार्यकाल बेदाग रहा। समाज को ऐसे ही लोगों की जरूरत है, जो अपने अच्छे कार्यों से अपना, अपने परिवार, अपने राज्य और देश का नाम रौशन करें। जाट समाज तो यह कहकर ही धन्य हो जाएगा कि जिओ बेटी!
युवा तुर्क चन्द्रशेखर चार या छह महीने ही भारत के प्रधानमंत्री रहे थे। कांग्रेस ने जब उनकी जाजम खींच ली, तो चंद्रशेखर को इस्तिफा देना पड़ा। उस समय प्रेस वालों से उन्होंने कहा था कि एवरेस्ट किसी का घर नहीं हो सकता। आप वहां झंडा गाड़ो, फोटो खिंचवाओ और नीचे चले आओ। उन्होंने कहा था कि ऊंचाई पर चकाचौंध और फिसलन बहुत ज्यादा होती है। ऑक्सीजन विरल होती है जिसके चलते सांस भी मुश्किल से ही ली जाती है।
चंद्रशेखर चिंतक व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री आवास को अपना घर नहीं माना, लेकिन हम अपने आसपास कितने ही लोगों को देखते हैं, जो सरकारी निवासों को अपना स्थाई आवास मानने लगते हैं। इनमें कर्मचारी, अधिकरी और विधायक कोई भी पीछे नहीं है। ऐसे लोगों के बीच में राजस्थान की पूर्व मुख्य सचिव श्रीमती कुशल सिंह ने अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। सेवानिवृत्ति के दिन ही उन्होंने न सिर्फ सरकारी बंगला खाली कर दिया, बल्कि चाबियां भी नए मुख्य सचिव को सौंप दी। इसके बाद वे नोएडा के लिए रवाना हो गई।
सेवानिवृत्ति के बाद कौन कहां रहे? यह फैसला तो उस व्यक्ति को ही करना होता है। तुलसीदास जी ने कहा था, 'बुरे लोग मिलने पर दुख देते हैं, जबकि अच्छे और सज्जन लो बिछुडऩे पर दुख दे जाते हैं।' अच्छा होता कि कुशलसिंह जी राजस्थान को ही घर बनातीं। एन.जी.ओ. गठित करतीं और अपने लोगों के बीच कार्य करतीं। समाज से और समाज सेवा से कैसी निवृत्ति। जिन लोगों के बीच आपने 35 साल काम किया वह काम अभी तो समाप्त नहीं हुआ है। राजस्थान पिछड़ा है, बीमारू है। आखिर कौन उसे आगे लाएगा। गुजरात आज प्रगति की दौड़ में देश में सबसे आगे है, तो उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि सरकारी स्तर पर जितना कार्य हुआ है, उतना ही शायद सहकारी और गैर सरकारी (स्वयं सेवी संगठनों) ने भी किया है। पूर्व प्रशासक इन चीजों को ज्यादा बेहतर तरीके से क्रियान्वित कर सकते हैं। इसीलिए हम तो यही कहेंगे कि 'कुशल जी लौट आइए!'
संदेश कारगर रहा
कुशलसिंह जी जब राजस्थान की मुख्य सचिव बनी थीं, तब प्रमुख अखबार ने एक खबर छापी थी कि अशोक गहलोत सरकार ने कुशलसिंह मुख्य सचिव बनाकर जाट समाज को एक संदेश दिया है। कुशलसिंह ने अपने नाम के आगे कभी सरनेम नहीं लगाया अैर न ही कभी अपने को चौधरी कहलवना पसंद किया। वे कभी जाट ऑफिसर्स के समागम में नहीं गई। उन्होंने अपने जाट होने का जयघोष भी कभी नहीं किया, फिर भी सरकार संदेश देने में सफल रही। उन्हें मुख्य सचिव बनाने का संदेश जाट समाज में अच्छा ही गया। यह प्रजातंत्र ही है, जिसमें आहत समाज की भावनाओं पर मरहम रखने की कोशिश होती है। सिख आतंकवाद, ऑपरेरशन ब्लूस्टार और श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर कांग्रेस ने सिखों के साथ समूची दुनिया को तगड़ा मैसेज दिया। बिलकुल इसी तहर जाट मुख्यमंत्री के मुद्दे पर अशोक गहलोत की जिस तरह की टस्सल श्री शीशराम ओला के साथ हुई थी। उस कड़ुवाहट को कम करने में कुशल सिंह को मुख्य सचिव बनाने के संदेश ने कारगर भूमिका अदा की है।
...अब कुशल सिंह जी से यही निवेदन कर सकते हैं, वो बस लौट आएं। अपने प्रदेश। इसे बनाने, संवारने।
Post a Comment