राम राम साय ।
सभी जाट भाइयों को राम राम ...
अभी तक की जो पोस्ट थी वो उन जाटो समर्पित थी जो किसी विशेष क्षेत्र में जाट समाज को नाम रोशन कर रहे हैं। ये क्रम जारी रहेगा पर मैंने सोचा की बीच में कुछ अन्य बाते भी हो जायें ताकि नवीनता बनी रहे।
सबसे पहले तो मैं आपको यह बता दूँ की न तो मैं हिन्दी का ज्यादा जानकर हूँ और न ही कोई लेखक हूँ पर इस फॉरम में लिखने से अपने आपको रोक नही पाया!
वैसे जुझारू हिन्दी भाषा का शब्द है जो जाट को सही तरीके से परिभाषित नही करता है पर ये जाट को 1 शब्द में समझाने क लिए निकटतम जरूर है। जहाँ तक मुझे पता है इसका सामान्य अर्थ ये है "जो हमेशा जूझता रहे"... और ये तो सामान्य सी बात है की कोई भी आदमी जूझता तभी है जब उसके सामने परेशानियाँ हों। इन परेशानियों में रहते रहते जाट का शरीर एवं दिमाग एक अलग ही रंग में ढल चुका है जो निश्चित ही विकाश की तरफ़ है।
जहाँ तक मैं अतीत (जो ज्यादा पुराना नही है) को याद करता हूँ तो मुझे सबसे पहले ये याद आता है की जब मैं छोटा था तो मुझे ये अपने अनुभवों से पता चल गया था की जाट मजबूत तो होता है क्यूंकि गाँव की स्कूल में कभी भी जाटों की बेटे पिटके नही आते थे। और हमेशा से अपने माँ को रोज सुबह5 बजे उठते , पूरे दिन खेत में कड़ी मेहनत का काम करते देखता हूँ।
दादा जी को ये चिंता नही रहती थी की वे बीमार बल्कि ये चिंता ज्यादा थी की पड़ोसी ने तो काफ़ी ज्यादा लावणी कर ली है ।
घर के हर सदस्य का कमोबेश येही हाल था ... था क्या अब भी है ..
पर हर आदमी ने अपने आप को पीड़ित नही समझा , तब भी जब उनका हजारों रूपये का अनाज सैंकडों में बिका ।
चाहे वो सुबह मंडी में में प्याज 1 रुप्य्र प्रति किलो बेच के आया हो पर उसे तो उसी मंडी के बाहर लगे ठेले पर वही प्याज वापस 10 रूपये प्रति किलो में मिलता रहा है ।
किसी ने सच ही कहा है की " जाट की 100 बीघा , अहीर की 9 बीघा , माली की 2 बीघा और बनिए की 1 दुकान बराबर होती है"
पर मुझे लगता है की जाट की 200 बीघा भी उतना नही दे पाती... भला हो उन जाटो का जिन्होंने सन १९५५-६० के आस पास "जमीन बावे बिकी " का नारा देकर और डांग के जोर पर सामंतों से अपनी जमीन को बचाए रखा । मेरे गाँव में कोई 10-12 साल पहले 1 बनिया आया था पता नही कहाँ से ,( वैसे जाट कम ही अपनी जगह बदलता है)। पर बनिया हमेशा से होशियार रहा है चाहे आप चारों और नजर डाल लीजिये जो भी मारवाडी समुदाय जाना जाता है और हम उसपे गर्व करते हैं , उसमें कितने जाट हैं ॥
तो गाँव के 1 जने उसे रहने के लिए अपनी गाँव की पुराणी हवेली को उसे मुफ्त में रहने के लिए दे दियां... और अगर आज के हालत देखें तो उस बनिए ने उस हवेली को तो खरीद ही लिया है बल्कि पास में 10-12 बीघा जमीन, गाँव में 2 दूकान आदि भी हैं और गाँव में किसी जाट को अगर पैसे की जरुरत होती है तो वो बोलता है की भाया मुझसे ले जाना पर 3 रुपया सैंकडा लगेगा और गारंटी अलग। कहाँ से आया ये पैसा ??? बस उसने गाँव के सीधे साधे लोगों की भावनाओ से लके पैसा बनाया है... और इतनी शार्पनेस से की किसीको हवा भी नही लगी। पर वो जाट अभी भी उन्ही हालातों से जूझ रहे हैं! वर्तमान पीढी की बात करें तो किसी भी युवा जाट के दादा-दादी और माँ साक्षर नही हैं (कुछेक को छोड़कर) पर हाँ उन बुजुर्गो को ये आभाष जरुर था या उनकी दूरदृष्टी थी की पढ़ाई ही इन हालातो से निकलने का एकमात्र उपाय है ... सो उसी कारण से इस पीढी के ज्यादातर पिता पढ़े लिखे और नौकरीपेशा लोग हैं। अब हालात बदले हैं जो काफी सुखद है ...
इन समाज के ठेकेदारों को ये पहले से पता था की इस जाट को किसी ऐसे काम में लगाओ की ये अपने दिमाग का उपयोग न कर सके सो इन्होने जाट कौम को कृषक वर्ग बना दिया , ताकि ये अपने डील के जोर को मेहनत के कामों में बरबाद कर ले वरना उन्हें भय था की जाट को किसी भी तरीके से रोकना सम्भव नही है। सो जाट पता नही कितने सालों से इस जमीन में पैर गडाये बैठा है..। और वो ब्रह्मण बनिया ठंडी हवा में नोट गिन रहा है। और वहां ठण्ड में बैठा घणी मीठी मीठी बातें करता है और ऊपर से यह कहता है की जाट तो आडू है। इसे बोलने का होश नही है ये तो गाली देता है और ऊँची आवाज़ में बात करता है। वो अगर 1 घंटे 50 डिग्री तापमान पर खेत में काम करले तब पता चले की जाट को ताव क्यूँ आता है। इसी ताव की कारन जाट बिजनेस में कभी आगे नही आ पाया क्यूंकि उसे कभी यह कहना नही आया की "अजी थारी ही दूकान है"....
इस शब्द से पता नही वो लोग कितने आगे बढ़ चुके हैं... और इन लोगो ने अपने आप को भगवान का दर्जा भी दिलवा या है...। ये तो मुझे आज तक समझ नही आया की ब्रह्मण को ब्रह्मण दादा या ब्रह्मण देवता क्यूँ कहा जाता है। शायद कारण ये है की वर्ग विभाजन करने वाले लोग ये ही थे जबकि जाट तो उस वक्त खेत में जूझ रहा था । जाट हर कदम पर जूझा है ,रीजा है, ठगा गया है ।
अभी बहुत बदलाव की जरुरत है ... अब ये बदलाव कैसा होगा .... देखते हैं भविष्य क्या करवट लेता है ।
(जैसा की मैं बता चुका हूँ की मैं कोई लेखक नही हूँ सो कोई ग़लत शब्द या भूल हो तो क्षमा करें)
एक जोशीला जुझारू जाट -
जितेन्द्र बगङिया
dr.jitubagria@gmail.com
09799720730
सभी जाट भाइयों को राम राम ...
अभी तक की जो पोस्ट थी वो उन जाटो समर्पित थी जो किसी विशेष क्षेत्र में जाट समाज को नाम रोशन कर रहे हैं। ये क्रम जारी रहेगा पर मैंने सोचा की बीच में कुछ अन्य बाते भी हो जायें ताकि नवीनता बनी रहे।
सबसे पहले तो मैं आपको यह बता दूँ की न तो मैं हिन्दी का ज्यादा जानकर हूँ और न ही कोई लेखक हूँ पर इस फॉरम में लिखने से अपने आपको रोक नही पाया!
वैसे जुझारू हिन्दी भाषा का शब्द है जो जाट को सही तरीके से परिभाषित नही करता है पर ये जाट को 1 शब्द में समझाने क लिए निकटतम जरूर है। जहाँ तक मुझे पता है इसका सामान्य अर्थ ये है "जो हमेशा जूझता रहे"... और ये तो सामान्य सी बात है की कोई भी आदमी जूझता तभी है जब उसके सामने परेशानियाँ हों। इन परेशानियों में रहते रहते जाट का शरीर एवं दिमाग एक अलग ही रंग में ढल चुका है जो निश्चित ही विकाश की तरफ़ है।
जहाँ तक मैं अतीत (जो ज्यादा पुराना नही है) को याद करता हूँ तो मुझे सबसे पहले ये याद आता है की जब मैं छोटा था तो मुझे ये अपने अनुभवों से पता चल गया था की जाट मजबूत तो होता है क्यूंकि गाँव की स्कूल में कभी भी जाटों की बेटे पिटके नही आते थे। और हमेशा से अपने माँ को रोज सुबह5 बजे उठते , पूरे दिन खेत में कड़ी मेहनत का काम करते देखता हूँ।
दादा जी को ये चिंता नही रहती थी की वे बीमार बल्कि ये चिंता ज्यादा थी की पड़ोसी ने तो काफ़ी ज्यादा लावणी कर ली है ।
घर के हर सदस्य का कमोबेश येही हाल था ... था क्या अब भी है ..
पर हर आदमी ने अपने आप को पीड़ित नही समझा , तब भी जब उनका हजारों रूपये का अनाज सैंकडों में बिका ।
चाहे वो सुबह मंडी में में प्याज 1 रुप्य्र प्रति किलो बेच के आया हो पर उसे तो उसी मंडी के बाहर लगे ठेले पर वही प्याज वापस 10 रूपये प्रति किलो में मिलता रहा है ।
किसी ने सच ही कहा है की " जाट की 100 बीघा , अहीर की 9 बीघा , माली की 2 बीघा और बनिए की 1 दुकान बराबर होती है"
पर मुझे लगता है की जाट की 200 बीघा भी उतना नही दे पाती... भला हो उन जाटो का जिन्होंने सन १९५५-६० के आस पास "जमीन बावे बिकी " का नारा देकर और डांग के जोर पर सामंतों से अपनी जमीन को बचाए रखा । मेरे गाँव में कोई 10-12 साल पहले 1 बनिया आया था पता नही कहाँ से ,( वैसे जाट कम ही अपनी जगह बदलता है)। पर बनिया हमेशा से होशियार रहा है चाहे आप चारों और नजर डाल लीजिये जो भी मारवाडी समुदाय जाना जाता है और हम उसपे गर्व करते हैं , उसमें कितने जाट हैं ॥
तो गाँव के 1 जने उसे रहने के लिए अपनी गाँव की पुराणी हवेली को उसे मुफ्त में रहने के लिए दे दियां... और अगर आज के हालत देखें तो उस बनिए ने उस हवेली को तो खरीद ही लिया है बल्कि पास में 10-12 बीघा जमीन, गाँव में 2 दूकान आदि भी हैं और गाँव में किसी जाट को अगर पैसे की जरुरत होती है तो वो बोलता है की भाया मुझसे ले जाना पर 3 रुपया सैंकडा लगेगा और गारंटी अलग। कहाँ से आया ये पैसा ??? बस उसने गाँव के सीधे साधे लोगों की भावनाओ से लके पैसा बनाया है... और इतनी शार्पनेस से की किसीको हवा भी नही लगी। पर वो जाट अभी भी उन्ही हालातों से जूझ रहे हैं! वर्तमान पीढी की बात करें तो किसी भी युवा जाट के दादा-दादी और माँ साक्षर नही हैं (कुछेक को छोड़कर) पर हाँ उन बुजुर्गो को ये आभाष जरुर था या उनकी दूरदृष्टी थी की पढ़ाई ही इन हालातो से निकलने का एकमात्र उपाय है ... सो उसी कारण से इस पीढी के ज्यादातर पिता पढ़े लिखे और नौकरीपेशा लोग हैं। अब हालात बदले हैं जो काफी सुखद है ...
इन समाज के ठेकेदारों को ये पहले से पता था की इस जाट को किसी ऐसे काम में लगाओ की ये अपने दिमाग का उपयोग न कर सके सो इन्होने जाट कौम को कृषक वर्ग बना दिया , ताकि ये अपने डील के जोर को मेहनत के कामों में बरबाद कर ले वरना उन्हें भय था की जाट को किसी भी तरीके से रोकना सम्भव नही है। सो जाट पता नही कितने सालों से इस जमीन में पैर गडाये बैठा है..। और वो ब्रह्मण बनिया ठंडी हवा में नोट गिन रहा है। और वहां ठण्ड में बैठा घणी मीठी मीठी बातें करता है और ऊपर से यह कहता है की जाट तो आडू है। इसे बोलने का होश नही है ये तो गाली देता है और ऊँची आवाज़ में बात करता है। वो अगर 1 घंटे 50 डिग्री तापमान पर खेत में काम करले तब पता चले की जाट को ताव क्यूँ आता है। इसी ताव की कारन जाट बिजनेस में कभी आगे नही आ पाया क्यूंकि उसे कभी यह कहना नही आया की "अजी थारी ही दूकान है"....
इस शब्द से पता नही वो लोग कितने आगे बढ़ चुके हैं... और इन लोगो ने अपने आप को भगवान का दर्जा भी दिलवा या है...। ये तो मुझे आज तक समझ नही आया की ब्रह्मण को ब्रह्मण दादा या ब्रह्मण देवता क्यूँ कहा जाता है। शायद कारण ये है की वर्ग विभाजन करने वाले लोग ये ही थे जबकि जाट तो उस वक्त खेत में जूझ रहा था । जाट हर कदम पर जूझा है ,रीजा है, ठगा गया है ।
अभी बहुत बदलाव की जरुरत है ... अब ये बदलाव कैसा होगा .... देखते हैं भविष्य क्या करवट लेता है ।
(जैसा की मैं बता चुका हूँ की मैं कोई लेखक नही हूँ सो कोई ग़लत शब्द या भूल हो तो क्षमा करें)
एक जोशीला जुझारू जाट -
जितेन्द्र बगङिया
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जाट हमेशा से ही मेहनतकश और जुझारू रहे है इसमें कोई शक नहीं और आज भी यह कोम हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है व्यापार में भी | लेकिन जाट युवकों में दारू पीने की बुराई बढती जा रही है जो आने वाले समय में जाट जाति को उसी तरह खोखला कर देगी जैसे राजपूत राज होते हुए भी दारू के चलते खोखले ही रहे और बनियों ने हमेशा इन्हें भी लुटा |
बनियों की लुट का शिकार हर वर्ग रहा है चाहे दलित हो,कृषक हो या जागीरदार !
जाट समाज आज शराब के खिलाफ मुहीम चलाने की आवश्यकता है जिसके लिए आप जैसे पढ़े लिखे और समझदार लोगों को आगे आकर अभियान चलाना चाहिए |
बनियों की बानगी -
पांच साल पहले मै और मेरे एक मित्र एक जोधपुर में एक बनिए के कारखाने में उसके पास बैठे थे चर्चा चली एक महेश खत्री नाम के शख्स की तरक्की पर जिसने अपनी मेहनत के बल पर तरक्की कर अपना कपडे का कारखाना लगा दिया था हम चर्चा कर ही रहे थे कि बनिया बोल पड़ा - जो आपको तरक्की दिख रही है वो सब दिखावा है जी इन कपडों के कारखानों का पेट छ साल का होता है छ साल तक तो किसी का पता ही नहीं लगता कि उसने लाभ कमाया है या बाजार के पैसे पर उछल रहा है फिर उसने कपडा छपाई की कोस्टिंग निकल हमारे सामने रखदी जिसमे घाटा ही घाटा दिखाया उसने और साबित कर दिया कि कपडा छपाई का कारखाना चलाना तो घाटे का सौदा है |
उसके कारखाने के बाहर आने के बाद मेरे मित्र बोल पड़े कि - ये तो भला हो पंजाबियों का जिनकी देखा देखि अन्य जातियों के लोगो को भी व्यापार करने की प्रेरणा मिली वरना ये बनिए तो हमें घाटा ही घाटा दिखा कर इतना डरा कर रखते थे कि किसी की दुकान या कारखाना खोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ती थी | और आज जोधपुर में भी आपको जाटों,राजपूतों ब्राह्मणों के जो कपडा छपाई के कारखाने आपको दिखाई दे रहे वे नहीं दिखाई देते |
bilkul satik likha hai sir.
aap iske liye badhai ke patra hain.
रतन सिंह जी से पूरी तरह सहमत। प्रयास बनाए रखने होंगे। संस्कार और सरोकारों के साथ आगे बढ़ा जाए, तो वाकई तरक्की एक मिसाल का रूप लेती है।
लेखक को भी शुभकामनाएं।
रतनसिंह जी आपने जाटों की दुखती हुई रग पर हाथ रखा है। जाट आज की तारीख में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आगे हैं, लेकिन ऐसी शिक्षा किस काम की, जो संस्कार विहीन हो। अगर आप साक्षर हैं, पढ़े-लिखे हैं, तो आप अपना, अपने परिवार का और अपने समाज का अच्छा या बुरा समझ सकते हैं। लेकिन अगर ऐसी तमीज भी आप में विकसित नहीं होती है, तो ऐसा पढऩा लिखना ही बेकार है। गरीब मां-बाप किस तरह साधन जुटाकर एक लड़के को इंजीनियर बनाते हैं, वह लड़का इंजीनियर बनने के बाद लोहा, सीमेंट और कंकरीट खाने लगे, तो इसे आप क्या कहेंगे? एक गरीब घर से निकला हुआ लड़का अगर आर.ए.एस. या आई.ए.एस. अफसर बनने के बाद जमकर भ्रष्टाचार करे, तो ऐसा आई.ए.एस. होना समाज के किस काम का? इसलिए मेरा अनुरोध है कि बच्चों को सिर्फ डॉक्टर, इंजीनियर, आर.ए.एस और आई.ए.एस. ऑफिसर बनाने के बारे में ही नहीं सोचें, बल्कि उन्हें श्रेष्ठ मानव बनाने के बारे में विचार करें। अगर मनुष्य अच्छा होगा, तो वह अच्छा पुत्र होगा, पति होगा, भाई होगा। अगर संस्कारहीन हुआ, तो मां-बाप और रिश्तेदारों के साथ समूचे समाज को भी निराश ही करेगा। उससे लगी हुई आशाएं और आकांक्षाएं भी धूल-धूसरित होती नजर आएंगी। मैंने ऐसे कई भ्रष्ट लोगों को देखा है, जिन्होंने अपने मां-बाप को नहीं पूछा फिर भले ही उन्होंने भ्रष्ट तरीके अपनाकर कितनी ही धन-संपत्ति जोड़ ली हो।
भगवान राम से संबंधित एक घटना का जिक्र मैं यहां करना चाहंूगा, 'मुनि वशिष्ठ ने जब चारों भाईयों को नकली युद्ध का खेल खेलने के लिए दो गुटों में बंट जाने का आदेश दिया, तो भगवान राम ने वशिष्ठ जी से कहा कि - भाई-भाई के बीच तो नकली युद्ध भी ठीक नहीं है।' लेकिन आज हम देखते हैं कि राजस्थान में जमीन जायदाद को लेकर परिवार के लोग ही अपने भाई-बंधुओं को मौत के घाट उतार रहे हैं और खुद सारी जिंदगी जेल के सींखचों में बिता रहे हैं। सवाल यह है कि संपत्ति में नहीं, बल्कि विपत्ति में जो हाथ बंटाए, वही भाई होता है। आप ही बताइए रतनसिंह जी ऐसी लड़ाई किस काम की जिसमें एक भाई स्वर्ग में और दूसरा भाई नरक (जेल) में पहुंच जाए।
इसलिए मेरा जाटों से अनुरोध है कि वे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी दें। जिसमें नशे और शराबखोरी से दूर रहने का ज्ञान तो दें ही सही, बल्कि उसके खतरों से भी उन्हें अवगत कराएं। रतनसिंह जी मैं आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूं और इस विषय पर सभी जातियों में विचार-विमर्श, बहस-मुबहासा होना चाहिए, ताकि लोग जीवन के सकारात्मक पक्षों पर सोचना शुरू करें।
धीरेन्द्र जी
आपके विचारों से १००% सहमत हूँ संस्कार तो सबसे पहले चाहिए तभी समाज व देश का भला हो सकता है आपकी यह नसीहत सभी जातियों ,धर्मो व देशवासियों पर लागु होती है | संस्कार है तो हमारे पास सब कुछ है | संस्कारहीन पढ़ा लिखा , धनि या सफल व्यक्ति तो कोढ़ में खाज ही है |
ram ram sa jujaru jat
i am tejaram choudhary
राम राम जी रतन सिंह जी मै कभी लिखता नहीं पर आपके लिखे लगभग सारे किस्से पढता हु !! धन्यवाद आपका !! आप लगे रहे ताकि डॉक्टर साहब (जीतू बगरिया) भी लगे रहे आपसे मुकाबला करते रहे!! मै मनोज कोक सॉफ्टवेर इंजिनियर !!!!!!
बनियो से यदि इतनी परेशानी हैं तो सारे बनियों को हिंदमहासागर में क्यों नहीं डूबा देते हो आप लोग, पता नहीं क्यों जलते हो....
बनियों का बनाया हुआ कपडा पहनते हो, बनियो के बनाए हुए गाडी, बाइक पर चलते हो, बनियों के अखबार पढ़ते हो, बनियों के मोबाइल पर बाते करते हो, बनियों का बनाया लोहा - सीमेंट अपने घर में लगाते हो. बनियों की रिफाइनरी का तेल अपनी गाडियों में डलवाते हो, बनियो के जहाजो में घूमते हो. बनियों के होटलों में रुकते हो. बनियों के बनवाये हुए मंदिरों, धर्म शालाओ , तीर्थ स्थान पर जाते हो, बनियों के स्कूल कालेजो में पढ़ते हो, बनियों के कारखानों में नौकरी करते हो, सभी कुछ तो बनियों से मिल रहा है, फिर ये घृणा व अहसान फरामोशी क्यों?
प्रवीन गुप्ता जी,,, आपकी बातों से साफ़ पता चलता है,,, आप निहायत ही अहंकारी शख्स हो,,, बनिए को बनाया किसने पहले ये बताओ ? आज जो तुम बकवास कर रहे हो वो जाटों और खेती करने वाली दूसरी सभी जातियों का हनन कर के तुम इस काबिल बने हो,,, जमींदार भोले भले होते थे,,,, उनका अनाज तुम मन चाहे दाम पर लेते थे हर प्रकार से ठगते थे,,,, तब जा के तुम इस मुकाम पर पहुंचे हो,,, एहसान फ्रामोस तो तुम हुवे,,, जिस अन्न दाता के कारन तुम यहाँ पहुंचे उसे ही अहसान फ्रामोस कह रहे हो,,,
jaat sach me bahut mehanti he or usko khud ko devlop khud karega magar ye bhi such he aap garib nahi ho jaamin hona apki takat he khud ko bato ki jagah prectically devlop kare or kisi se ulajh kar bat na kar aap bhi inke jese logo se chalaki se bat kare apni market khud banaye . parantu sabse pehle apko khud ke bolne ka dhang or bin soche samjhe bolana or dicision lene par dhyan dena chahiye yahi chije apko piche kar rahi he. mere bate buri lage to sorry Rama Rawat
दूसरी जातियों को कोसने के बजाय अपने को सुधार लाो तो बेहतर होगा। दूसरों के मकानों में िकिरायेदार बन के घुसना और उस पर कब्जा जमा लेना, एक ही बेची हुई जमीन को दूसरे, तीसरे व्यक्ति को बेचना, शराब माफिया आदि गैर कानूनी कामों में लिप्त कौन है क्या ये बताने की जरूरत है। ''अतीत में ऐसा हुआ हमारे साथ, वैसा व्यवहार कियाा गया है '' कह कर अपने अपराधों पर पर्दा डालने की आदत छोडे। अब तो राजशाही भी खत्म हो चुकी है, लोकतंत्र है व्यवसाय चुनने की आजादी है तो अब रोना किस बात का अब कर लो व्यापार, प्रशासनिक पदों पर आ जाओ, डॉक्टर/इंजीनीयर बनने के समान अवसर है।
Ho hiro flying k jato k bare m jane h tu jat kisi te ghat na
Kisi k bare me galat comment nhi krna chahiye
Thanks for your tip